1998 की बात हैं छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिला के जंगल में बसा एक छोटा सा गांव हैं जहां विजय नाम के एक बच्चे का जन्म होता हैं। जिसके आने से पहले उनके घर में 8 और बच्चे थे, वो घर में सबसे छोटा था। एक तरफ उनके माता पिता लगन राम और माता सिया के मन में खुशी साफ दिखाई दे रही थी तो साथ में एक दुख और दर्द भी। उस जमाने में उनके पास खेती करने के लिए उपजाऊ जमीन और खाने के लिए अन्न नहीं था। बड़ी मुश्किल से जंगल में उनके 8 बच्चों का गुजरा होता था।
समय धीरे से निकलने लगा और विजय के माता पिता ने मेहनत करके सबको पल पोस कर बड़ा किया। विजय अब 5 साल का हो गया था। उसकी रुचि अपने माता पिता को जंगल में काम करते देख उसका भी मन था उनके साथ काम करने का।
विजय उनके साथ जंगल से लकड़ी लाने तो कभी खाने के चीजें लाने जाया करता था। सच कहे तो विजय बहुत ही मेहनती बच्चा था।
कुछ साल बाद विजय का दाखिला गांव के स्कूल में कराया गया। जहां उसकी पढ़ाई में कोई भी रुचि नहीं थी। उसे उसके शिक्षक के द्वारा हर दिन सीखाया और समझाया जाता था। फिर वो पढ़ाई में अच्छा करने लगा और हर एक कक्षा में वो प्रथम आया करता था।
विजय का मन पढ़ाई से ज्यादा खेलने गाना गाने और बाकी चीज में ज्यादा था। उसके माता पिता चाहते थे कि वह कम से कम नाव गांव पढ़ने के लायक पढ़ाई करले। हमारी तरह अंगूठा छाप ना हो जाए।
जिस वजह से उसे जिला मुख्यालय में स्थित सरकारी स्कूल में कक्षा 6 वी में प्रवेश करा देते हैं। जहां उसको छात्रावास में रहना और पढ़ाई करना था। उस समय विजय 11 वर्ष का था। वह गांव से दूर पहली बार शहर आया था।
विजय ने जैसे तैसे करके अपने आप को अपने भैया के साथ ढाला। उस समय उसके साथ में उनके बड़े भैया भी साथ में थे। छात्रावास में उसके साथ बहुत ही बुरा व्यवहार होता था। उसे सबका काम करना होता था, अपने बड़े छात्रों का कपड़ा धोना उनका काम करना। जिस वजह से वह पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाता था। वह धीरे धीरे करके पढ़ाई में कमजोर होने लगा।
उस समय उसके माता पिता उसको 10 रुपए दिया करते थे जिससे उसे पूरा महीने का गुजरा करना होता था। छात्रावास में उसे साबुन , तैल और कपड़ा साफ करने का पावडर दिया जाता था। जिस आज से वह उतने पैसे में पेन और कोलगेट खरीदा करता था।
सुबह 5 बजे उठ कर वह पूरे रूम को झाड़ू लगाता फिर तैयार होकर स्कूल जाया करता था। विजय बहुत ही गरीब विशेष पिछड़ी जनजाति परिवार से था। इस लिए उसके पास ठीक से कपड़ा नहीं था। जिससे हमेशा उसका मजाक बना करता था। जब स्कूल में ब्रेक होता तो सब 2 रूपए का पपड़ी और भेज खाया करते थे। तो विजय उनको देख करता था, लेकिन उसके पास खाने के लिए पैसे नहीं होते थे। वह उन्हें देख कर ही अपना भूख मिटा लेता था।
गरीबी की दयनीय स्थिति की वजह से वह अपनी स्कूल और कक्षा में मजाक का पात्र बनता था। ज्यादातर छात्र उसके काले रंग का मजाक उड़ाया करते थे। उसके पास कभी कपड़े तो कभी पेन ओर कॉपी नहीं होने का भी मजाक बनता था।
समय आगे निकला एक दिन स्कूल में उसका पेट अचानक से दर्द करने लगा और वह दर्द से तड़पने लगा। उसके पेट कुछ नहीं था वो भूखा था। ऐसा कई बार हुआ करता था फिर भी वह सब कुछ सह लेता था।
एक बार उसे कक्षा 8 में क्लास टीचर ने क्लास से बाहर निकल दिया क्योंकि उसके पास चप्पल और जूता नहीं था। फिर उसने अपने बड़े भाई का फटा हुआ जूता पहनना शुरू किया। उसके हर एक दिन कठिनाईयों से गुजरा करता था। फिर भी से वह कही ना कही किसी उम्मीद के सहारे जिंदा था।
उसने अब पढ़ाई करना प्रारंभ किया उसे लगा उसके पास कुछ नहीं हैं। कोई भी उसे पसंद नहीं करते हैं, उसे बैगा बैगा करके चिढ़ाते हैं। वो पूरी तरह से टूट चुका था उसका बचपन पूरा अभिशाप बन गया था। खेलने कूदने के उम्र में वो जिंदगी जीने के गुण सिख रहा था।
उसने धीरे धीरे करके सारे कठिनाइयों से लड़ना सिख लिया। वह छुट्टियों के दिन में गांव में रहता और घर का पूरा काम करता। खेत जाना, गाय भैंस को चारा खिलाना, खाना बनाना बस सभी क्षेत्र में कुशल था। वो कभी भी अपने से बढ़ों की बात नहीं टालता।
समय ने रुख बदला विजय 10 वी कक्षा में पास हो गया। लेकिन उसको आगे क्या करना हैं और क्या होता हैं कुछ भी नहीं पता था। उस समय वह गांव में था उसको मालूम नहीं था कि आगे की प्रवेश प्रक्रिया क्या होता हैं। बस खेती किसानी कर रहा था, तभी किसी ने कहा कि तुम 11 वी कक्षा में प्रवेश ले लिया?? मैं बोला मुझे तो पता नहीं क्या और कैसे करना हैं।
जब मैं प्रवेश के लिए स्कूल गया तो पता चला की बायोलॉजी की सभी सीट भर चुकी हैं। अब उसके पास कुछ भी उपाय नहीं था सिर्फ मैथ्स बचा था। जिस वजह से उसने कहा कि मैथ्स ही दे दो, फिर सर ने उसका रिज़ल्ट देखा और बोले कि तुम तो बस पास हुआ हो तुम्हे नहीं लेना चाहिए। तुम्हे कुछ दूसरा विषय का चयन करना चाहिए।
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