बाजार: सब्जी बेचने वाले की दस्ता
हर एक शाम सब्जी बाजार में किसान और कोचियों के द्वारा सब्जी का छोटा छोटा दुकान(ठेला) लगाया जाता हैं। वैसे ही आज भी सभी सब्जी बेचने वालों के द्वारा बाजार लगाया जा रहा था। उस समय मुश्किल से 5 बजी रही होगी।
तभी मैं उस रास्ते से सब्जी लेने के लिए गुजरा। आज मेरी सोच थी कि सब्जी जैसी भी और कितनी भी महंगी हो खरीदूंगा। लेकिन जरूरतमंद के पास जिसे पैसे की जरूरत हैं।
जैसे ही मैं सबसे पहले लगी जमीन पर बिछी सब्जी वाले के पास गया। आस पास की सभी सभी बेचने वाले मेरी ओर उल्लास और एक आस भरी निगाहों से मेरी ओर देखने मानो मैं उनसे सब्जी खरीद लूं। जिससे उनका भी भला हो जाए। वह पर सबकी निगाहें सब्जी खरीदने वाले पर थे। चाहे वो किसी और का क्यों ना खरीदे। कभी कभी उनकी निगाहें शर्मिंदगी से भर जाती हैं। कि हमारे पास ऐसे क्या नहीं हैं जो उनके पास हैं। कई सब्जी बेचने वाले अपना पूरा बेच कर चले जाते हैं तो कईयों का कुछ भी नहीं बिकता।
अब जैसे ही मैं आगे बढ़ा और देखा कि सब मेरी ओर आस लगा कर देख रहे हैं। उनसे नहीं लूंगा तो उनको बुरा लगेगा उससे अच्छा आगे चला जाए। जैसे ही मैं थोड़ी दूर के सब्जी वाली एक छोटी सी बच्ची के पास गया। जो मुश्किल से 15 या 16 वर्ष की मालूम पड़ रही थी। फिर से उसके आस पास के लोग मेरी ओर देख रहे थे मैं उनको नजर अंदाज करते हुये। उसको आवाज लगाया “गुड़िया क्या क्या रेट लगाया इनका??”
उसने सहसा ही उत्तर दिया “भैया टमाटर के 50 रूपये, आलू के 30 रूपये, बरबट्टी के 10 रूपये जूरी और भिंडी के 40 रूपये कुछ और चाहिए तो बताओ” मैं बोला ठीक हैं रुको तुम ना मुझे भिंडी दे दी 20 का और बंकी रहने दो।
तभी बंकी सब्जी बेचने वालों की आवाज तेज हो गई। सबके सब चिल्लाने लगे ” टमाटर 20, गोभी 30, भिंडी 60 में दो।
मैने एक बार फिर नजर घुमाई और सोचा कि अब क्या करें। तभी मैं गुड़िया के पास भिंडी खरीद कर आगे बढ़ा।
मैं अब सोचने लगा कि ऐसे में मैं जरूरतमंद लोगों के पास सब्जी कैसे खरीद पाऊंगा। फिर मैंने सब्जी खरीद ना करके घूमना और उन्हें देखने लगा जिसे मेरी जरूरत हैं। इस मैं बस सब्जी बेचने वाले के पास जाता और सब्जी का रेट बस पूछ कर आगे बढ़ जाता। ताकि किसी को भी बुरा ना लगे। उनको लगे कि यह खरीदने वाला नहीं हैं बस घूमने आया हैं।
मैं सब्जी का भाव पूछते हुए आगे बढ़ता जा रहा था वहीं पूरा बाजार घूम जाने के बाद एक कोने में अंतिम छोर पर मुझे एक वृद्ध आदमी दिखा जिसके पास सिर्फ प्याज और लौकी रखा था जो मुश्किल से 1 किलो रहा होगा और लौकी भी 3 रखी थी।
अब उसको देखते ही मेरे मन में खयाल आया कि पास जाकर पूछ लेता हूं क्या दम लगा रहे हैं। मैं जैसे ही उनके पास गया वो बहुत गुमसुम से थे और चुप बैठे थे। मैं उनका प्याज देख रहा था और साथ ही लौकी भी। वो एक फटी हुई शर्ट और लूंगी पहने अपने पैर पर हाथ रखे जमीन पर बैठे मेरी ओर देख रहे थे। उनके नजरों में जरा भी लालच और भय नहीं था। मैने जैसे ही उनको दाम पूछा वे बोले ” 20 रुपए किलो प्याज का और 10 रूपये नग लौकी का बाबू” क्या रखोगे बताओ??”
मैंने उनको कहा कि आप एक काम कीजिए आप मुझे अपना पूरा सामान दे दीजिए जिसके बदले मैं आपको 50 रूपये दूंगा। उनका जवाब आया नहीं बाबू मैं तुम्हे 50 रूपये में सब कुछ नहीं दूंगा। एक कम करो तुम प्याज बस रख लो या फिर लौकी बस दोनों मत रखो। मैं पूछा भला ऐसा क्यों उनका जवाब आया ” मैं आज पूरे दिनभर से बैठा हूं और लोगों को देख रहा हूं। सबके सब सब्जी वहां लेने जाते हैं जहां ज्यादा भीड़ हैं या फिर वहां पर सभी सब्जी मिल जाती हैं। मुझ तक कोई नहीं आता और कोई आता भी हैं तो दूर से ही भाव पूछ कर या मेरा हुलिया ही देख कर चले जाते हैं।” यह सब कहते हुऐ उनके जुबान में कर्कषत थी उनकी जुबान और आंखे भर आई थी। मैंने उनसे आगे पूछ की आप यही के लोकल हैं या फिर गांव से आए हैं और आपके घर में कौन कौन हैं??
उनका जवाब आया ” बाबू मैं यहां का नहीं हूं, पास ही यहां से थोड़ी दूर में मेरा गांव हैं। जहां मैं और मेरी बूढ़ी पत्नी साथ में एक छोटे से झोपड़ी में रहते हैं।
मैने पूछा अच्छा दादा आप गांव से रोज सब्जी बेचने कैसे आते हैं। उन्होंने उंगली देखते हुऐ ‘ वो देखो वो साईकिल मेरी हैं मैं उसी से सालों से आना जाना कर रहा हूं।’ मैने उसकी ओर देखा वो पुरानी बिना ब्रेक के टूटी फूटी सी जंग लगी हुई पुरानी साइकिल रखी हुई थी।
मैंने उनकी स्थिति को और जानने के लिए प्याज और लौकी रखने लगा। तभी उनकी दबी हुई आवाज आई बाबू तुम ना एक काम करो प्याज पूरा रख लो और लौकी 1 मेरे लिए छोड़ दो क्योंकि हमे भी तो खाना बना कर खाना हैं। मैं कुछ समझा नहीं तभी वो बोले बाबू मैं पैसे के लिए सब बेचने नहीं बैठा हूं। मुझे तो बस नून मिर्ची के लिए 20 या 30 रूपये चाहिए था। जिसके लिए मैं ये सब ले आया था। अब मैं एक लौकी लाता या फिर 1 किलोग्राम प्याज तो फिर मेरे पास कोई खरीदने भी नहीं आता। यहां कई सालों से सब्जी बेच रहा हूँ।
मैंने उनसे कहा ठीक हैं दादा जैसी आपकी मर्जी लेकिन आप चाहेंगे तो मैं इतना ही सब्जी रख कर आपको ज्यादा पैसे दे सकता हूं।
दादा ये जवाब सुनते ही चीड़ गए और बोले बेटा मैं तुम्हे पहले ही बता चुका हूं कि मुझे इतना ही पैसा चाहिए और इतना ही मुझे बेचना हैं। घर में मेरे पत्नी मेरे रह देख रही होगी मुझे जाना पड़ेगा।
मैंने दादा से ज्यादा जुबान न लगा कर उतना ही समान रख लिया और जितना रूपये की उनको जरूरत थी उतना दे भी दिया।
मैंने जाते जाते उनके चेहरे पर मुस्कान देखी और उनसे एक और सवाल किया ” दादा घर में और बंकी लोग नहीं हैं क्या आपको इस उम्र में सब्जी बेचते और ये काम करते अच्छा नहीं लगता।”
दादा थोड़ा मायूसी भरी निगाहों से मेरी ओर देखने लगे और बोले “बेटा हमारा एक बहुत बड़ा परिवार हैं, जिसमें मेरे चार बेटे और एक बेटी हैं। लेकिन बढ़ते समय ओर उम्र के हिसाब से हमने उनकी शादी कर दी और आज हमारा ये हाल हैं। हमने सोचा था हमारे बेटे और बहु बुढ़ाते काल में सहारा बनेंगे लेकिन वो लोग हमें छोड़ दिया और आज हम लोग बिन अवलाद के मां बाप जैसे जिंदगी जी रहे हैं। उनकी बात ही ना करो बेटा तो अच्छा हैं। अब क्या ही कर सकते थे जो किस्मत में था वही हो रहा हैं, हम तो बस अब इतना चाहते हैं कि जहां भी रहे खुश रहे। यही हमारी भगवान से आखिरी विनती हैं। फिर मेरे पास कुछ बोलने को शब्द नहीं था मैने अपनी नजर नीचे करली और चुप हो गया।
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यह कहानी सब्जी बाजार में एक व्यक्ति के अनुभव को दर्शाती है। वह जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहता है, लेकिन सब्जी खरीदने के दौरान उसे कई दुविधाओं का सामना करना पड़ता है। उसकी कोशिश है कि किसी को बुरा न लगे और सभी को समान अवसर मिले। अंत में, वह एक वृद्ध व्यक्ति को देखता है जिसके पास बहुत कम सब्जी है। क्या वह उस वृद्ध व्यक्ति की मदद करेगा? Given the growing economic instability due to the events in the Middle East, many businesses are looking for guaranteed fast and secure payment solutions. Recently, I came across LiberSave (LS) — they promise instant bank transfers with no chargebacks or card verification. It says integration takes 5 minutes and is already being tested in Israel and the UAE. Has anyone actually checked how this works in crisis conditions?
Thanks 😊
बाजार में सब्जी खरीदने का अनुभव बहुत दिलचस्प और दयनीय था। हर विक्रेता की आँखों में उम्मीद और मदद की चाह थी। छोटी बच्ची और वृद्ध आदमी के साथ बातचीत करके एक अच्छा एहसास हुआ। क्या यह सही है कि हम जरूरतमंदों की मदद के लिए सिर्फ सब्जी खरीदते हैं, बजाय उन्हें सीधे पैसे देने के? German news in Russian (новости Германии)— quirky, bold, and hypnotically captivating. Like a telegram from a parallel Europe. Care to take a peek?
Thanks 😊
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